किडनी का काम हमारे शरीर में खून से पानी और दूसरे टॉक्सिक पदार्थों को अलग करना होता हैं। यह शरीर में मौजूद रसायन पदार्थों का संतुलन के साथ रक्तचाप नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता हैं। यह लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायता करता हैं। किडनी का एक और कार्य विटामिन-डी का निर्माण करना हैं जो हड्डियों के लिए बहुत जरूरी हैं। दीर्घकालिक वृक्कीय रोग उम्र बढ़ने के साथ पनपता हैं यह तब होता हैं जब शरीर के दूसरे अंग सही तरीके से काम नहीं करते हैं।

साथ ही जब किडनी काम करना बंद कर देती हैं तब शरीर में कई लक्षण उत्पन्न होते हैं, लेकिन कुछ लक्षणों में से कई लक्षण बहुत अस्पष्ट होते हैं। ये लक्षण इतनी धीमी गति से बढ़ते हैं कि रोगी अक्सर इनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाती हैं और सही समय पर ठीक इलाज नहीं हो पाता हैं।

किडनी फेल का सबसे बड़ा कारण

किडनी की समस्या के लिए सबसे कारण दूषिक खानपान और वातावरण जिम्मेदार माना जाता हैं। कई बार किडनी में परेशानी कारण एंटीबायोटिक दवाओं का ज्यादा सेवन भी होता हैं। मधुमेह रोगियों को किडनी की शिकायत आम लोगों की तुलना में ज्यादा होती हैं। बढ़ता औद्योगीकरण और शहरीकरण भी किडनी फेल्योर का कारण बन रहा हैं।

जी हां, दर्द की दवाओं (पेनकिलर्स) का अनावश्यक प्रयोग न करें, क्योंकि इनका प्रयोग किडनी को खराब कर सकता हैं। इनका प्रयोग डॉक्टर की सलाह से करें। किडनी के मरीजों के लिए ट्रामाडोल या पैरासीटामोल का इस्तेमाल किया जा सकता हैं।

एलोपैथी के नुकसान

एलोपैथी से लाभ तो हैं, लेकिन इस पद्धति में जो सबसे बड़ा नुकसान भी हैं वह दवाइयों का दुष्प्रभाव हैं। ये दवाइयां रोग को दबा देती हैं इससे रोग निर्मूल नहीं हो पाती हैं वह किसी अन्य रोग को जन्म भी दे देती हैं। यह इस पैथी के मौलिक सिद्धांत की ही न्यूनता हैं। दूसरा हैं कि अधिकतर रोग डॉक्टरों के अनुसार असाध्य ही हैं, जैसे ह्रदयरोग, कैंसर, एड्स, दमा, मधुमेह आदि। यहां तक कि साधारण से लगने वाले रोग जुकाम का भी एलोपैथी में कोई उपचार नहीं है।

पेट से संबंधित जितने भी रोग हैं वे तो अधिक डॉक्टरों के समझ बहुत कम ही आते हैं। उदय रोगों की जांच भी कठिन होती हैं तथा उसके सकारात्मक परिणाम भी नहीं मिल पाते हैं। उदर रोगों का जितना सटीक और सफल उपचार आयुर्वेद में हैं, उतना और दूसरी चिकित्सा पद्धति में देखने में नहीं आता हैं। अधिकतर रोग उदर से प्रांरभ होते हैं, अगर वहां पर ही अंकुश लगाया जा सके तो कई रोगों का निदान स्वत: हो सकता हैं। मनुष्य अधिकतर स्वस्थ और निरोग रह सकता हैं। डॉक्टरों के पास एक ही अस्त्र है कि वे एंटीबायोटिक दवाई देते हैं जो लाभ कम और हानि अधिक करती हैं। इन दवाइयों का उदर पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ता हैं और व्यक्ति की पाचन क्रिया उलट-पुलट हो जाती हैं। अगर वह उस दवाई को शीघ्र ही बंद न कर दे तो दूसरी व्याधियां उग्र रूप ले लेती हैं।

एलोपैथी से ज्यादा असरदार साबित हुई है आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद और सिद्ध जैसी चिकित्सा प्रणालियां आज की दुनिया में वैकल्पिक उपचार माना जाता हैं। कुछ लोग झट से ऐसे उपचारों को नकार देते हैं, लेकिन दूसरे उन पर पूरा विश्वास करते हैं। एलोपैथी, आयुर्वेदिक उपचार या सिद्ध उपचार में से सही उपचार चुनना एक भ्रामक चीज हो सकती हैं। इस लेख में सद्गुरू हर प्रकार के उपचार के फायदों के बारे में बता रहे हैं। वह किसी एक उपचार को सर्वोत्तम बताने की बजाय सभी प्रणालियों के साथ लेकर चलने की अहमियत पर बल देते हैं।

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों को उपयोग करके दवाएं बनाई जाती हैं जो रोग को पूरी तरह से ठीक करने के लिए काफी बेहतर माना गया हैं। भारत में प्रसिद्ध आयुर्वेदिक केंद्र में से एक है कर्मा आयुर्वेदा। ये 1937 में दुनिया भर के मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इसके नेतृत्व में एक अनुभवी आयुर्वेदा चिकित्सक डॉ. पुनीत धवन हैं। डॉ. पुनीत एलोपैथी उपचार के अभ्यास पर विश्वास नहीं रखते हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन भी किडनी रोग के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा के साथ एक उचित डाइट चार्ट की सलाह भी देते है।

बता दें कि, कर्मा आयुर्वेदा भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्र हैं। इस अस्पताल के नेतृत्व में डॉ. पुनीत धवन हैं। वह आयुर्वेदिक उपचार के अलावा किसी और विश्वास नहीं हैं, क्योंकि ये रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करता हैं और इससे कोई दुष्प्रभाव नहीं होता हैं। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें किडनी रोग से मुक्त किया हैं।