जब किडनी उचित तरीके से कार्य करने में समक्ष नहीं रहते, तो ऐसी प्रक्रिया जिसमें मानव शरीर से जहरीले अपशिष्ट और अत्यधिक द्रव को निकाल जाता है। उसे डायलिसिस कहा जाता हैं। किडनी रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। सामान्य परिस्थितियों में किडनी शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निकालने का कार्य करते हैं और इन अपशिष्ट पदार्थों को पेशाब के माध्यम से शरीर बाहर निकाल जाता हैं। साथ ही डायलिसिस किडनी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य करता है, जो कि शरीर का सारा कचरा बाहर करता है इसलिए इस प्रक्रिया को किडनी की प्रतिस्थापन चिकित्सा के रूप में भी जाना जाता हैं। “डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट”

किडनी डायलिसिस:

किडनी के लिए ही डायलिसिस किया जाता है जब किडनी की कार्यक्षमता 80-90 प्रतिशत तक घट जाती है और पेशाब का बनना बहुत कम हो जाता है जिससे विषाक्त पदार्थों का शशरीर में जमा होने से थकान सूजन, मतली, उल्टी और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसे समय में सामान्य चिकित्सा प्रवंधन यानि दवाई अपर्याप्त हो जाता है और मरीज को डायलिसिस शुरू करने की जरूरत होती है। किडन का डायलिसिस को हीमोडायलसिसि भी कहते हैं। मनुष्य के शरीर में दो किडनियां होती है जब दोनों ही किडनी फेल हो जाता है तभी हीमोडायलिसिस किया जाता है। “डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट” “किडनी फेल के आयुर्वेदिक उपचार”

डायलिसिस की जरूरत:

जब किसी व्यक्ति की किडनी ठीक ये काम करना बंद कर देते हैं औऱ शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को पिल्टर करने में सक्षम नहीं रहते है तो तब अपशिष्ट शरीर में जमा होने लगता है। यह गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है। जब किडनी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और किडनी फेल्योर हो जाता हैं, तो डायलिसिस एक मुख्य विकल्प होता है। साथ ही किडनी फेल्योर के कारण, रक्त ठीक से फिल्टर नहीं होता जिससे गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। जब किडनी की बीमारियां अनुपचारित रहती हैं, तो वे गंभीर जटिलताओं को जन्म देती हैं और अंतत: किडनी के फेल्योर  कारण बनती है। डायलिसिस की प्रक्रिया अवांछित पदार्थों और तरल पदार्थ को हटाने में मदद करती है। इससे पहले कि किडनी की गंभीर बीमारी वाले किसी मरीज के किडनी फेल हों। डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट

लक्षण:

किडनी फेल्योर वाले रोगियों में डायलिसिस किया जाता है, डायलिसिस करने का निर्णय कई कारकों पर निर्भर करता हैं जैसे-

  • किडनी की चोट
  • नशा व जहर
  • यूरिमिया, पेरिकार्डिटिस, एन्सेफैलोपैथी
  • इलेक्ट्रोलाइट – हाइपरकेलीमिया
  • एसिडईमियागलोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट (GFR) – 15 mL/min से कम होने पर डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट

आयुर्वेदिक उपचार:

आयुर्वेद के चिकित्सकों का मानना है कि एक या अधिक किडनी रोगों के डायग्नोस (रोग को पहचानना) के बाद भी जिंदगी है। अगर रोग की पहचान पहले ही हो जाती है तो इसे वैकल्पिक उपचारों से ठीक किया जा सकता है। डॉक्टरर्स का यह भी मानते हैं कि मरीज़ इन वैकल्पिक इलाजों का उपयोग कर सकते हैं और महंगे डायलिसिस को कराना छोड़ सकते हैं। जो मरीज़ डायलिसिस के बिना अपनी किडनी की फ़ंक्शंस को बनाए रखना चाहते है  हर्बल चिकित्सक उनके स्वास्थ्य को सुधारने में उनकी मदद कर सकते है। अपने प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करके, वे बीमार व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे सकते हैं और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान से रोक सकते हैं। डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट

कर्मा आयुर्वेदा को एशिया में बेहतरीन स्वस्थ केंद्रों में से एक माना जाता है। यह धवन परिवार द्वारा 1937 में शुरू किया गया था और उसके बाद से पूरे हर्बल विधियों वाले सभी प्रकार की किडनी रोगियों का इलाज किया जा रहा है। वह दवाइयों के साथ अपने रोगियों के लिए एक व्यक्तिगत डाइट चार्ट की भी सलाह देते हैं। केंद्र हर वर्ष हजारों किडनी रोगियों के साथ सफलतापूर्वक इलाज कर रहा है। “डायलिसिस पेशेंट के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट”