प्राकृतिक रूप से घर पर किडनी को कैसे शुद्ध करें

किडनी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। किडनी की खराबी किसी भी गंभीर बीमारी या मौत का कारण बन सकती है। वैसे आप इसकी तुलना एक सुपर कंप्यूटर के साथ भी कर सकते हैं, क्योंकि किडनी की रचना बेहद अटपटी है और उसके कार्य भी अत्यंत जटिल है उनके प्रमुख कार्य है – हानिकारक विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालती है और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों (सोडियम और पोटेशियम आदि) का नियमन करती है। इसमें थोड़ी सी भी खराबी आने पर व्यक्ति की जान पर बात आ जाती है, इसलिए किडनी को स्वस्थ रखना बेहद महत्वपूर्ण है।

किडनी की खराबी –

जब किडनी को किसी बीमारी की वजह से नुकसान पहुंचता है, तब किडनी अपना काम करना बंद कर देती है या ठीक तरीके से काम नहीं कर पाती है, तो इस स्थिति को किडनी की बीमारी कहा जाता है। जब किडनी रोग होता है तब किडनी प्रभावी रूप से अपशिष्ट द्रव को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती। जिससे शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन भी खराब हो जाता है। शरीर में अपशिष्ट द्रव जमा होने से शरीर का संतुलन खराब होने लगता है, जिससे आपको अपने शरीर में कई समस्याएं महसूस होने लगती हैं।

किडनी की खराबी के लक्षण –

किडनी फेल्योर में सबसे बड़ी समस्या यह है कि, शुरूआत में इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन जब यह बीमारी अंतिम स्टेज पर पंहुच जाती है तब इसके लक्षण कुछ इस प्रकार नजर आने लगते हैं जैसे –

  • थकान और कमजोरी महसूस होना
  • पेशाब करते वक्त दर्द होना
  • चेहरे और पैरों में सूजन आना
  • बार-बार पेशाब आना
  • पीठ के नीचे की तरफ दर्द होना
  • भूख न लगना
  • उल्टी और उबकाई आना
  • खुजली और पूरे शरीर पर रैशेज होना

किडनी रोग होने पर रक्त में क्रिएटिनिन के स्तर का पता लगाने के लिए साधारण सी जांच की जाती है। इससे किडनी की कार्यक्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है। साथ ही पेशाब और स्क्रीनिंग के द्वारा भी किडनी रोग की जांच की जा सकती है। यूरिन में क्रिएटिनिन और एलब्यूमिन की लिए जांच की जाती है और जो लोग किडनी रोगों के उच्चतम जोखिम पर है, उन्हें जांच जरूर करवाना चाहिए।

प्राकृतिक रूप से घर पर ही करें किडनी ठीक –

आजकल की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम कई तरह के टॉक्सिन के संपर्क में आते रहते हैं। फास्ट फूड के रूप में अस्वास्थ्यकर चीजों का खाना, कैफीन जैसे उत्तेजक पेय पदार्थों को पीना और पार्टी करने की जीवनशैली को हम मनुष्यों ने अपने जीवन को जीने का तरीका बना लिया है और हमारे सिस्टम में इस सभी चीजों से निकलने वाले टॉक्सिन को वास्तव में सहन कौन करता है। एक जोड़ी बीन के आकार का अंग जो एब्डोमिन कैविटी के एक-एक किनारे पर स्थिति होता है, जिन्हें किडनी कहते हैं।

यह दिन रात अपना काम करती है, चौबीसों घंटे इन हानिकारक टॉक्सिन को फिल्टर करती है। जब इन टॉक्सिन का लोड बेहद अधिक हो जाता है तो इसको सहन करने वाले इस अंग की अर्थात किडनी के काम करने की क्षमता कम हो जाती है। जिससे किडनी स्टोन, इंफेक्शन, सिस्ट, ट्यूमर होने की संभावना बढ़ना बढ़ जाती है और किडनी अपना काम करना बंद कर देती है। आप इन प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर अपनी किडनी को साफ और स्वस्थ रख सकते हैं।

  • विटामिन – कुछ अलग तरह के वाइटमिन किडनी को स्वस्थ रखने के लिए बेहद लाभदायक होते हैं। जी हां, इनमें से एक है विटामिन-डी, जो किडनी रोग को खत्म करने में मदद करता है। विटामिन-बी6 पथरी नहीं होने देता है और विटामिन-सी किडनी को कई प्रकार के होने वाले नुकसान से बचाता है।
  • एप्पल साइडर विनेगर – एंटीबैक्टीरियल गुणों की वजह से किडनी में इंफेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया का अंत करता है और एप्पल साइडर विनेगर पथरी को धीरे-धीरे गला देता है। इसके साथ ही एप्पल साइडर विनेगर उन हानिकारक तत्वों को किडनी से बाहर निकालता है। जिससे उन्हें नुकसान न हो।
  • बेकिंग सोडा – एक शोध के अनुसार, सोडियम बाइकार्बोनेट किडनी रोग में लाभदायक होता है। यह रक्त में एसिडिटी को कम करता है, जिससे किडनी की बीमारी नहीं होती है।
  • सब्जियों का जूस – किडनी में कोई परेशानी होने पर लौकी, खीरा, गाजर और पत्ता गोभी का रस पीना काफी अच्छा होता है। इसके अलावा तरबूज और आलू का रस भी बेहद फायदेमंद है। जल्दी राहत पाने के लिए दिन में दो बार सब्जियों का जूस पीना चाहिए।
  • मुन्नके का पानी – अगर आप किडनी रोग से जूझ रहे हैं, तो रोज रात को सोने से पहले कुछ मुन्नके पानी में भिगो दें और सुबह उठकर उसके पानी को पिएं। साथ ही भिगे हुए मुन्नका खाने की ज़रूरत नहीं है। कुछ दिनों में आपको फायदा नजर आने लगेगा।
  • पानी की मात्रा – किडनी को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि आप ज्यादा से ज्यादा टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकाल दीजिए। इसके लिए आपको सिर्फ दिन में 3 से 4 लीटर पानी पीने की जरूरत है। आप कभी कभार नींबू को पानी में डालकर पी सकते हैं। इससे किडनी के लिए आवश्यक वाइटमिन-सी प्राप्त हो जाएगा।
  • अदरक – अदरक का उपयोग दवा के रूप में सालों से होता आ रहा है। इसमें मौजूद जिन्जेरॉल्स एक सक्रिय यौगिक और एंटीबैक्टीरियल एजेंट है, जो किडनी में बैक्टीरिया को फैलने से रोकता है और सूजन को कम करता है।
  • अजवाइन – अजवाइन के सेवन से शरीर में अतिरिक्त पदार्थों को बाहर करने में सहायता मिलती है और यह किडनी के कार्य को करने में मदद करती है। यह किडनी में बेकार चीजें जमा होने से रोकती है। अजवाइन की जड़ से मूत्र अधिक बनता है, जिससे अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। किडनी को सक्रिय करने वाले टॉनिक के रूप में भी जाना जाता है। इसमें पोटेशियम और सोडियम भी अधिक होता है।
  • हल्दी – लो यूरिन वॉल्यूम, रीनल फेल्योर और कुछ सामान्य इंफेक्शन के इलाज में हल्दी का इस्तेमाल होता है। इसके कई फायदे हैं जैसे – इंफेक्शन के खतरे को घटाता है, सूजन कम करता है, किडनी की पथरी को बनने से रोकता है और हल्की किडनी सिस्ट को भी ठीक करता है।

किडनी को शुद्ध रखने के लिए  –

भारत का प्रसिद्ध किडनी उपचार केंद्र कर्मा आयुर्वेदा है, जहां किडनी की बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है। यह सन् 1937 में धवन परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और आज इसका नेतृत्व डॉ. पुनीत धवन कर रहे हैं।

कर्मा आयुर्वेदा में सिर्फ आयुर्वेदिक उपचार पर भरोसा किया जाता है। साथ ही डॉ. पुनीत धवन ने सफलतापूर्वक और आयुर्वेदिक उपचार की मदद से 35 हजार से भी ज्यादा मरीजों का इलाज करके उन्हें रोग मुक्त किया है, वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना। आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे –

  • पुनर्नवा
  • शिरीष
  • पलाश
  • कासनी
  • लाइसोरिस रूट
  • गोखरू
  • त्रिफला
  • गुदुची
  • दालचीनी
  • हल्दी

यह प्राकृतिक जड़ी-बूटियां रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं।

आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करके दवा बनाई जाती है, जिसमें किडनी रोगियों का इलाज किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं में वरूण, कासनी, गोखरू, पुनर्नवा और शिरीष जैसी जड़ी-बूटियां शामिल हैं जो रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करती हैं। किडनी की सभी बीमारियों के लिए आयुर्वेदिक उपचार सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हुई है। आयुर्वेद ने दुनिया भर की मानव जाति के संपूर्ण, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास किया है। आपके शरीर का सही संतुलन प्राप्त करने के लिए वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करती है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और दुनिया में स्वास्थ्य की देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है।

दुनियाभर में सबसे अधिक मान्यता एलोपैथी उपचार पद्धति को मिली हुई है, लेकिन आयुर्वेदिक उपचार एक प्राचीन पद्धति है, जिसका शब्दिक अर्थ है जीवन का विज्ञान । मनुष्य के समग्रतावादी ज्ञान पर अधारित है। यह पद्धति मानवीय शरीर के उपचार तक ही सीमित रखने की बजाय, शरीर, तन-मन और आत्मा के बीच संतुलन बनाकर स्वास्थ्य में सुधार करता है। इस पद्धति की एक और उल्लेखनीय विशिष्टिता है। यह औषधीय गुण रखने वाली वनस्पतियों व जड़ी-बूटियों के जरीए बीमारियों का इलाज करती है। आयुर्वेद में निदान व उपचार से पहले मनुष्य के व्यक्तित्व की श्रेणी पर अधिक ध्यान दिया जाता है। आयुर्वेद में मुताबित, मानव शरीर चार मूल तत्वों से निर्मित है – दोष, धातू, मल और अग्नि। आयुर्वेद में शरीर की इन बुनियादी बातों का अत्यधिक महत्व है। इन्हें ‘मूल सिद्धांत’ या आयुर्वेदिक उपचार के बुनियादी सिद्धांत कहा जाता है।