क्रैनबेरी को हिंदी में करौंदा कहा जाता है। क्रैनबेरी का वैज्ञानिक नाम वैक्सीनियम मैक्रोकारन (Vaccinium Macrocarpon) होता है। यह एक छोटा सा फल होता है। जो खाने में खट्टा और पूरी तरह से पक जाने के बाद मीठा हो जाता है। करौंदा एक प्रकार का दुर्लभ फल होता है, जो आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता है । इसके पौधे पुरे साल हरे-भरे रहते है, इसी कारण इसे सदाबहार भी कहा जाता है। यह देखने में हलके गुलाबी या गहरे गुलाबी रंग का होता है।

आमतौर पर करौंदे का इस्तेमाल सब्जी बनाने, चटनी, मुरब्बे और अ़चार बनाने के लिए किया जाता है। करौंदा देखने में भले ही छोटे होते है लेकिन इसके अंदर बहुत गुणकारी होते है। करौंदे में आयरन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। करौंदा भूख बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। इसके साथ-साथ इसमें और भी कई औषधिक गुण है जो हमारे लिए लाभदायक है।

करौंदे के पौष्टिक तत्व :-

Cranberry व्यवसाय के तौर पर शिर्फ़ फायदेमंद नहीं बल्कि इसमें कई प्रकार के पोष्टिक तत्व पाए जाते है जो हमारे शरिर को स्वस्थ बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाता है । Cranberry में पाए जाने वाला तत्व ।

करौंदा न सिर्फ देखने में सुन्दर होता है बल्कि इसके अंदर काफी सारे पोष्टिक तत्व भी है। जो हमारे शरीर को स्वस्थ बनाएं रखने में हमारी मदद करता है। साथ इसके पौष्टिक तत्व हमें बिमारियों से भी कोसो दूर रखते है। करौंदे में पाएं जाने वाले तत्व निम्नलिखित है:-

  • कैलोरीज
  • फैट
  • कोलेस्ट्रॉल
  • सोडियम
  • पोटैशियम
  • कार्बोहायड्रेट
  • प्रोटीन
  • विटामिन
  • कैल्शियम
  • मिनरल्स

करौंदे से रोगो का उपचार :-

अब तक हम यह तो जान ही चुके है की करौंदे से हमें क्या-क्या गुणकारी तत्व मिलते है। लेकिन करौंदा हमें कई जानलेवा बीमारियों से भी बचा कर रखता है। यदि हम इन बीमारियों से खुद को बचा कर ना रखे तो आने वाले समय में यह बीमारिया अपना विलकराल रूप धारण कर सकती है। और नतीजा होगा “किडनी फेल्योर”। यदि हम खुद को निम्नलिखित बीमारियों से बचा कर ना रखे तो आने वाले समय में हमारी किडनी ख़राब हो सकती है। किडनी के ख़राब होने से पहले हमें इसकी रोकथाम करनी चाहिए। आइये जानते है की करौंदे से हम किन-किन रोगो को दूर रख सकते है :-

यूरिन इंफेक्शन – यूरिन से हमारे पुरे शरीर की जानकारी मिलती है।  यूरिन में आने वाली किसी भी प्रकार की कोई भी खामी किडनी में दिक्कत होने की तरफ इशारा करती है। लेकिन कभी-कभी हमें यूरिन इंफेक्शन का सामना करना पड़ता है। यूरिन इंफेक्शन हमारे लिए बहुत ही खतरनाक होता है। इससे छुटकारा पाने के लिए हम करौंदे के जूस का सेवन कर सकते है। करौंदे के जूस से हमें ना केवल मूत्र प्रणाली के रोगों में बल्कि पाचन शक्ति बढ़ने में भी मदद मिलती है। करौंदे के सेवन से यूरिन के रास्ते गंदे बैक्टीरिया शरीर से बाहर निकल जाते हैं। करौंदे के जूस में विटामिन-सी, एंटीऑक्सीडेंट और सेलीसायलिक एसिड होता है। क्रैनबेरी जूस में प्रोएंथोसायनेडिंस होते हैं, जो ब्लैडर की वॉल पर बैक्टीरिया और कोशिकाओं को मिलने से रोकते हैं। इसलिए करौंदा को खाने और इसके रस को पीने से यूटीआई की समस्या ठीक होती है।

दिल – करौंदे के सेवन से हम दिल की बीमारियों से दूरी बना सकते है।  इसका सेवन कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर ह्रदय संबंधी रोगों से बचाता है। रोज 1 ग्लास लो-कैलरी क्रैनबेरी जूस पीने से दिल की बीमारियों का खतरा 10 फीसदी तक कम हो जाता है।

कोलेस्ट्रॉल –  करौंदे के जूस से हम अपने अंदर बनने वाले बैड कोलेस्ट्रॉल को खत्म कर सकते है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, दिन में एक गिलास क्रैनबेरी के रस का पीने से अच्छे कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है। क्रैनबेरी में मौजूद पोलीफेनॉल्स भी प्लेटलेट बिल्ड-अप को रोकने और रक्तचाप को कम करने में मदद करते हैं जिससे हृदय रोग के खतरे को कम कर सकते हैं।  क्रैनबेरी में मौजूद पॉलफिनॉल हमारे शरीर को बीमारियों से बचाने वाले सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करते हैं।

सेवन से पहले ध्यान दें :-

करौंदे के सेवन से भले ही हमें कई रोगी से मुक्ति मिलने सहायता मिलती हो लेकिन अभी चिकित्सीय कारणों के चलते इसके सेवन से पड़ने वाले बुरे प्रभावों की पूरी जानकारी नहीं है। इसी कारण यदि आप गर्भवती या स्तनपान करती है तो आपको करौंदे के सेवन बचना चाहिए।साथ ही आपको बता दें की क्रैनबेरी में सॅलिसीलिक एसिड की बहुत अधिक मात्रा होती है। सॅलिसीलिक एसिड एस्पिरिन के समान होता है। यदि आपको एस्पिरिन से एलर्जी है तो क्रैनबेरी रस के सेवन से बचें।

आयुर्वेद की मदद से हम हर गंभीर रोग से मुक्ति पा सकते है। आयुर्वेद किसी चमत्कार से कम नहीं है। आयुर्वेद में हर बीमारी को जड़ से खत्म किया जाता है। वो भी बिना किसी संक्रमण के, जो हमें अक्सर अंग्रेजी दवाओं के सेवन से हो जाता है। आयुर्वेद सदियों से अपना चमत्कार दिखा रहा है।

आज “कर्मा आयुर्वेदा” उसी प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का सफल इलाज कर रहा है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना वर्ष 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। धवन परिवार तभी से किडनी फेल्योर का सफल इलाज कर रहे है। कर्मा आयुर्वेदा ने इस क्षेत्र में आयुर्वेद का लोहा मनवाया है। वर्तमान में कर्मा आयुर्वेदा का नेतृत्व डॉ.पुनीत धवन कर रहे है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त कर रहा है।