किडनी हमारे शरीर में रक्त शुद्ध कर अपशिष्ट उत्पादों, अतिरिक्त क्षार और अम्ल को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल देती है, जिससे शरीर में संतुलन बना रहता है। लकिन कई कारणों के चलते किडनी खराब हो जाती है, उस दौरान शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर लगातार बढ़ता रहता है और इसके कारण किडनी की कार्यक्षमता कम होने लगती है, इस स्थिति को क्रोनिक किडनी डिजीज कहा जाता है। इस रोग में व्यक्ति की दोनों किडनियां 60 से 65 प्रतिशत तक खराब हो जाती है। जानकारी के आभाव के कारण इस बीमारी की पहचान अंतिम चरण में होती है। क्रोनिक किडनी डिजीज में व्यक्ति की किडनी खराब होने में एक लम्बा समय लगता है। किडनी खराब होने पर रोगी को औषधियों के साथ-साथ कई बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, जैसे – खानपान, योग, किडनी खराब होने के कारक आदि।
किडनी खराब होने के कारण :-
किडनी कभी भी अपने आप खराब नहीं होती। किडनी कुछ कारणों के चलते खराब होती है। किडनी खराब होने के खास कारण निम्नलिखित हैं –
मूत्र संक्रमण –
मूत्र संक्रमण या यूरिन ट्रैक इन्फेक्शन (UTI) एक गंभीर समस्या है। बड़ों की तुलना में बच्चे इस बीमारी के अधिक शिकार होते हैं। मूत्र संक्रमण के दौरान किडनी पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे किडनी संक्रमण होने का खतरा रहता है। किडनी संक्रमण समय के साथ किडनी फेल्योर जैसी गंभीर बीमारी बन जाता है। यह गंभीर बीमारी विशेषकर 10 से कम वर्ष के बच्चों को होती है। इस बीमारी की चपेट में सबसे महिलाऐं ज्यादा आती है और बहुत कम पुरुष इस बीमारी की चपेट में आती है।
उच्च रक्तचाप –
उच्च रक्तचाप के पीछे सोडियम यानि नमक होता है, अगर रक्त में सोडियम की मात्रा अधिक हो जाए तो व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या उत्पन्न होने लगती है। उच्च रक्तचाप के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में समस्या होती है, साथ ही अधिक क्षार युक्त रक्त को बार बार शुद्ध करने के कारण किडनी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किडनी खराब हो जाती है। बता दें उच्च रक्तचाप के कारण व्यक्ति को दिल से जुडी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
मधुमेह –
मधुमेह को किडनी खराब होने का मुख्य कारण माना जाता है। एक बार मधुमेह होने के बाद इससे बच पाना मुश्किल होता है। मधुमेह के कारण हमारे शरीर में और भी कई प्रकार की बीमारियां होना शुरू हो जाती है। जैसे रक्तचाप में अधिक मात्रा में उतार-चढाव का होना, मोटापा बढ़ना आदि। मधुमेह होने पर रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, शर्करा युक्त रक्त को शुद्ध करते समय किडनी पर दबाव पड़ता है। किडनी पर लगातार दबाव पड़ने के कारण किडनी खराब हो जाती है।
किडनी की विफलता के लक्षण :-
किडनी खराब होने पर शरीर में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं –
- सांस लेने में तकलीफ
- बार-बार उल्टी आना
- पेशाब करने में दिक्कत होना
- शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन
- आंखों के नीचे सूजन
- कंपकंपी के साथ बुखार होना
- पेट में दर्द
- पेशाब में रक्त और प्रोटीन का आना
- बेहोश हो जाना
- पेशाब में प्रोटीन आना
- गंधदार पेशाब आना
- पेशाब में खून आना
- अचानक कमजोरी आना
- पेट में दाई या बाई ओर असहनीय दर्द होना
- नींद आना
- कमर दर्द होना
किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी फेल्योर का जटिल उपचार :-
किडनी खराब हो जाने के शुरुआती चरण में एलोपैथी चिकित्सक रोगी को रक्तचाप का कंट्रोल, डायट में प्रोटीन्स का रेस्ट्रिक्शन, नमक कम करने आदि चीजों से परहेज करने के लिए बोलते है। किडनी खराब होने पर एलोपैथी चिकित्सक रोगी को डायलिसिस कराने की सलाह देते हैं. विदेशों में इस रोग में रोगी को डायलिसिस जैसे जटिल उपचार से गुजरना पड़ता है, जोकि बहुत पीड़ादायक होता है। डायलिसिस रक्त छानने की एक कृत्रिम क्रिया है, जो शरीर से अपशिष्ट उत्पादों और अन्य विषाक्त तत्वों शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। किडनी खराब होने पर शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त मात्रा कम हो जाती है जिसे डायलिसिस द्वारा ठीक करने की कोशिश की जाती है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का सफल उपचार नहीं है, बल्कि यह सिर्फ रोगी को राहत भर देने का एक कृत्रिम उपचार है।
डायलिसिस से आपकी किडनी फेल्योर की बीमारी रुकेगी की तो नहीं लेकिन स्लो हो जाएगी। फिर उसके बाद रोगी का नियमित तौर पर डायलसिस किया जाता है। डायलसिस हफ्ते में एक बार कराया जाता है जिसमें खून की सफाई की जाती है। यह नियमित तौर पर ताउम्र किया जा सकता है, लेकिन एक समय ऐसी स्थिति आती है, जब रोगी को डायलिसिस से राहत मिलनी बंद हो जाती है। उस समय चिकित्सक रोगी को किडनी ट्रांसप्लांट कराने की सलाह देते हैं।
किडनी ट्रांसप्लांट आम तौर पर उन रोगियों का किया जाता है जो किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी के के अंतिम चरण में होते हैं। किडनी ट्रांसप्लांट का ओपरेशन किडनी डोनर पर निर्भर है। किडनी डोनर या तो एक मृत व्यक्ति होता है जीवित व्यक्ति होता है। जब किडनी मृत व्यक्ति से प्राप्त होती है, तो उसे मृत दाता गुर्दा (deceased donor kidney) कहा जाता है और जब यह एक जीवित व्यक्ति से आता है (आमतौर पर यह परिवार के सदस्य से आता है) इसे एक जीवित दाता गुर्दा (living donor kidney) कहा जाता है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए केवल स्वस्थ व्यक्ति ही अपनी किडनी दान दे सकते हैं, वहीं मृत व्यक्ति की किडनी लेते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि व्यक्ति की मौत किस कारण हुई है। अगर व्यक्ति की मौत मस्तिष्क से जुड़ी किसी समस्या से हुई है तो उस व्यक्ति किडनी नहीं ली जा सकती।
किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान रोगी को कई दवाओं का सेवन करवाया जाता है, जिससे रोगी का शरीर नई किडनी अपना सकें। इन दवाओं में रोगी को प्रतिरक्षादमनकारी (immunosuppressant) नामक एक खास दवा दी जाती है। इस दवा से रोगी को कई दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रोगी को बहुत ही महँगी दवाओं का सेवन सदा के लिए-आजीवन लेनी पडती है। शुरू में दवाइँ की मात्रा (और खर्च भी) ज्यादा लगती है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती है। किडनी प्रत्यारोपण करने के बाद मरीजों द्वारा ली जानेवाली दवाईयों में उच्च रक्तचाप की दवा, कैल्शियम, विटामिन्स इत्यादि दवाईयाँ कम या बढ़ाया जा सकता हैं।
किडनी प्रत्यारोपण होने के बाद क्या-क्या परेशानियां आ सकती है?
किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान रोगी को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमे किडनी की अस्वीकृति भी एक है –
- संक्रमण,
- मूत्र संक्रमण,
- दस्त,
- अत्यधिक बाल विकास या बाल गिरना,
- रक्तस्राव,
- सूजन,
- पेट की ऐंठन,
- मुँहासे,
- मूड स्विंग,
- एनीमिया,
- गठिया,
- दौरे,
- मधुमेह की संवेदनशीलता,
- कैंसर का खतरा
- वजन
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण होने का खतरा रहता है, जिसके कारण शरीर के श्वेतकणों में रोगप्रतिरोधी पदार्थ (एन्टिबॉडीस) बनते है। यह एन्टिबॉडीस जीवाणु से संघर्ष करके उसे नष्ट कर देते है। इसी प्रकार नई लगाई गई किडनी बाहर की होने के कारण मरीज के श्वेतकणों में बने एन्टिबॉडीस किडनी को नुकसान पहुँचा सकते है। इस प्रकार नुकसान के कारण नई किडनी खराब हो जाती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में किडनी रिजेक्शन कहा जाता है। किडनी की अस्वीकृति, ट्रांसप्लांट के बाद किसी भी समय हो सकती है। प्रायः यह पहले छः माह में होती है। अस्वीकृति की गंभीरता हर रोगी में अलग होती है। प्रायः किडनी की अस्वीकृति होना किसी विशेष कारण से नहीं होता है और इसका इलाज उचित इम्युनोसप्रेसेन्ट चिकित्सा द्वारा हो जाता है। पर कुछ रोगियों में किडनी की अस्वीकृति होना गंभीर हो सकता है और जो अंत में किडनी को नष्ट कर सकता है।
कर्मा आयुर्वेदा द्वारा किडनी फेल्योर का आयुर्वेदिक उपचार :-
किडनी खराब होने पर उसे पहले की तरह ठीक करना बहुत ही मुश्किल काम होता है। आयुर्वेद की सहायता से खराब किडनी को फिर से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेद किसी चमत्कार से कम नहीं है, जो काम एलोपैथी उपचार नहीं कर सकता उसे आयुर्वेद बड़ी आसानी से करने की ताक़त रखता है। “कर्मा आयुर्वेदा” किडनी फेल्योर का आयुर्वेद की मदद से सफल उपचार करता है। कर्मा आयुर्वेदा बिना किसी डायलिसिस और बिना किडनी ट्रांसप्लांट के ही खराब किडनी को ठीक करता है।
वर्ष 1937 में कर्मा आयुर्वेदा की नींव धवन परिवार द्वारा रखी गयी थी तभी से कर्मा आयुर्वेदा किडनी फेल्योर के रोगियों को इस जानलेवा बीमारी से छुटकारा दिलाता आ रहा है। वर्तमान समय में डॉ. पुनीत धवन कर्मा आयुर्वेद की बागडोर को संभाल रहे है। डॉ. पुनीत धवन पुर्णतः आयुर्वेद पर ही विश्वास करते हैं और आयुर्वेद की मदद से किडनी से जुड़ी बीमारी का निदान करते है। डॉ. पुनीत ने अभी तक 35 हजार से भी ज्यादा रोगियों को किडनी फेल्योर की जानलेवा बीमारी से छुटकारा दिलवाया है, वो भी बिना डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट किये।